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Sunday, May 25, 2008

कहीं ...कोई...


मैं बात परेशानी की कर रहा था, जो आता है कहता है कि इस राह गए तो कांटे चुभे उस राह जाते तो कांटे न चुभते। ख़बरदार उस राह मत जाना कोई ऐसा क्यों नही मिलता, जो कांटे निकल दे स्नेह से हाथ फेरे और मैं फ़िर उस्सी राह से घायल होकर लौटूं तो उसके स्नेह कि छाया फ़िर मेरे लिए आतुर रहे' मैं हर बार यही करूं और हर बार उसके स्नेह बढ़ता रहे.....
हरिशंकर परसाई






सोचते ही रहे पूछेंगे तेरी आंखों से किस से सिखा है हुनर दिल में उतर जाने का...

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