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Monday, June 14, 2010

जो भले हैं तो क्या?

आम धारणा है, मनमोहन भले आदमी हैं लेकिन उनकी इस भलाई का क्या जो बुरे को बुरा भी न बोल सकें। महंगाई बढ़ी कमीशनखोर मन्त्री आग में पेट्रोल डालते रहे लेकिन यह भला आदमी चुप बैठा रहा। मन्त्री पद पर रहकर पैसा बनाते रहे, आईपीएल के घोटाले करवाते रहे, स्पेक्ट्रम बेचने में करोड़ों का खेल करते रहे लेकिन यह भला आदमी चुप बैठा रहा। अब जब भोपाल गैस त्रासदी का भूत फिर बाहर निकला है यह भला आदमी 10, जनपथ के आंचल में छुपा हुआ बैठा है। क्या यह दुभाüज्य से कुछ कम है कि एक भला आदमी यह हिसाब तो लगा लेता है कि शरद पंवार पर हाथ डालने से केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार को नुकसान होगा इसलिए इस पर हाथ न डाला जाए। वह यह अनुमान लगा लेता है कि भले एक ही परिवार के दो-तीन मन्त्री बनाने पड़ें लेकिन साउथ में अपनी ताकत कम नहीं होने देना है, वह यह हिसाब लगा लेता है कि शुचिता के नाम पर थरूर को हटाना सम्भव है लेकिन उन टटपूंजिए दलों पर हाथ नहीं डाला जा सकता जो सहयोगी हैं। नक्सली समानान्तर सता चला रहे हैं लेकिन इस भले आदमी का खून नहीं खौलता, बताइये क्या करें इस भले आदमी का? यस बॉस- जी आका, से भले ही कुर्सी पर आप जमे रहें लेकिन आप उसकी गरिमा खत्म कर देते हैं। कल्पना कीजिए उस सरकार की जिसके प्रधानमन्त्री के 20 के आसपास सांसद थे लेकिन उसके मुखिया(चन्द्रशेखर) ने भी उस गरिमा की कुछ हद तक तो लाज रखी जो वास्तविकता के लिहाज से सबसे बड़ा पद है। हमारा नुकसान कभी बुरे लोगों से उतना नहीं किया है जितना इन छk भेल लोगों से हुआ है। एक व्यक्ति जो महत्वाकांक्षा का मारा है और जानता है कि उसे किसने के सामने खुद को निरीह साबित करने से इस पद पर कायम रहने की ऑक्सीजन मिलती रहेगी। बताइये घाघ माने जाने वाले अर्जुनसिंह और इस भले आदमी में क्या फर्क है, एक खुलकर राजनीतिज्ञ है और दूसरा छk रूप से सत्ता केन्द्र बना रहता है। कठपुतलियां भी तब विद्रोह कर ही देती हैं जब अति हो जाए लेकिन हमने अरसे तक ऐसे लोगों को देखा है जो अपनी रीढ़ की हड्डी गिरवी रख देते हैं। उम्र के आठवें दशक में पहुंचकर भी राजनीतिक मौत से डरने वालांे ने कितने गलत कामों की भागीदारी यस सर कहते हुए निभाई होगी कल्पना कर ही रूह कांप जाती है।

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