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Monday, June 14, 2010

कब्र में लटके पांव और ड़ेढ लाख

तेल के फैलाव से ज्यादा अब ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) को उस जुर्माने की चिन्ता है जिसके बारे में कहा जा रहा है यह बिलियन ऑफ बिलियंस में होगा यानी बात अरबों-खरबों रुपए तक जा पहुंचेगा। पर्यावरणीय नुकसान के अलावा इससे 11 मौतें हुई हैं और अमेरिकी कानून के आगे ब्रिटिश अर्थव्यवस्था कांपती हुई खड़ी है। ओबामा बीपी के मुखिया से मिले तो भी उन्होंने यही चेतावनी दी कि नुकसान की भरपाई तो करना ही होगी। अब जरा इस नज़रिए से देखें भोपाल की उस त्रासदी के फैसले को। महज 1.भ् लाख का डोनेशन एक संस्था को देकर एण्डरसन एक राज्य के मुयमन्त्री को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेता है। मिक जैसी बेहद-बेहद खतरनाक गैस का रहवासी इलाके में इतना स्टॉक रख लेता है कि हजारों मौत हो जांए, लाखों प्रभावित हो जाएं और बीसियों साल पर्यावरण स्तर पर न आ सके। शर्मिन्दगी का आलम यह कि जो शहर चीख-कराहों से भरा हो उसका डीएम अपनी कार सबसे बड़े अपराधी को छोड़ने जाता है। पीएम ऑफिस से लेकर मुयमन्त्री निवास तक कोई मर रहे लोगों की संया से चिन्तित नहीं था बल्कि फोन घनघना रहे थे एण्डरसन को बचाने के लिए। नाकारा, निकमे और लिजलिजे लोगों की फौज उस अपराधी को उस दिन ही बचाने में नहीं लगी थी बल्कि उसके बाद भी पूरी मशीनरी उन सारे लोगों को बचाने में लगी थी जो इसके जिमेदार थे। सत्ता के फर्श से अर्श तक सारे सूत्र उस जनता के विरोधी की तरह काम कर रहे थे जिसके आगे चुनावों में वोटों की भीख मांगने वे जा खड़े होते थे, जिसके पैसों से वे आज तक बिना काम किए करोड़ों की कमाई कर रहे हैं। कानून का शिखर तक इन लोगों के आगे बेबस था। भोपाल त्रासदी का फैसला न सिर्फ हमारे बेरहम सिस्टम का आईना है बल्कि गणतन्त्र के उस लूपहोल का भी निशान बताता है जहां से खून से रंगे हाथ करोड़ों लोगों के फैसले करते हैं। कानून की आंखों पर पट्टी न होती तो एण्डरसन से लेकर हेडली तक (इसमें बोफोर्स भी जोड़ लें) के उन लोगों का हिसाब भी जरूर होता जो एण्डरसन से भी ज्यादा अशक्त और निशक्त हो जाने के बाद भी (या कहें कब्र की आहट के बावजूद) सच को सच नहीं कह सकते। बीमारी और घिसट-घिसट कर मरने से ज्यादा बेहतर क्या यह नहीं होगा कि ऐसे लोग खुद को उन लागों के हवाले कर दें जिनके वे अपराधी हैं। जाहिर है सजा तो मौत की ही होगी लेकिन शायद यही सुकून रहे कि ड़ेढ़ लाख के बदले हजारों की मौत का लाइसेंस देने का अंजाम तो यही होना चाहिए।

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