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Sunday, August 1, 2010

परसाई की यह बात दोस्ती के लिए भी कितनी मुफीद है....
मैं बात परेशानी की कर रहा था...
जो आता है कहता है...
इस राह गए तो कांटे चुभे, उस राह जाते तो कांटे न चुभते...
ख़बरदार उस राह मत जाना
कोई ऐसा क्यों नहीं मिलता जो कांटे निकाल दे...
स्नेह से सिर पर हाथ फेरे, और मैं फिर उस्सी राह से घायल हो कर लौटूं तो उसके स्नेह की छाया मेरे लिए फिर आतुर रहे...
मैं हर बार गलती करूं और हर बार उसका स्नेह हर बार बढ़ता रहे....

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