मीडियाई धुरंधरों के खत हवा में तैर रहे हैं और इनके लाजवाब जवाब भी आ रहे
हों लेकिन इस दौर में भी हमारे खतों को जवाब उन्होंने नहीं दिया जिन्हें ये
संबोधित किए गए और जिन पर इनके जवाब देने की जिम्मेदारी थी; छह महीने लंबे
इंतजार पर भी न एमडी महोदय की तरफ से कोई जवाब है और न उन समूह संपादक
महोदय की तरफ से जो रेल से भी लंबा लिखते हैं; दो तीन खत तो यशवंत भाई के
सौजन्य से सभी के सामने पहुंच गए हैं जो बाकी रह गए हैं उनके साथ ही उन
वजहों को भी सामने लाने की कोशिश होगी जिनके चलते ईमानदारी का राग अलापने
वाले भी किसी जालसाज को बचाने के लिए हद तक नीचे चले जाते हैं; फिलहाल तो
उन मामलों की बानगी देखिए जिनसे मैं पिछले छह महीनों से दो चार हो रहा हूं;
मीडिया के साथियों....
मैं आदित्य पांडे इंदौर डीबी स्टार में 3 अगस्त 2008 से कार्यरत हूं और फिलहाल डीएनई की पोस्ट पर हूं. लगभग 3 साल पहले संपादक के तौर पर आए श्री मनोज बिनवाल को मैं कभी भी पसंद नहीं रहा क्योंकि वे कमोबेश हर खबर में पैसा बनाने की राह तलाशने को पत्रकारिता मानते हैं. दिसंबर 2015 में मनोज बिनवाल ने मुझे सूचना दी कि न्यू ईयर टीम के साथ मुझे काम करने के लिए नेशनल एडीटर कल्पेश याग्निक ने चुना है. मैंने इस टीम में काम किया और एक जनवरी 2016 से मैं फिर अपने मूल काम यानी डीबी स्टार में लौट आया.
जनवरी 2016 में अचानक एक दिन मुझे कल्पेश याग्निक ने बुलाकर कहा कि आप न हमारे साथ काम कर रहे हैं और न ही डीबी स्टार में काम कर रहे हैं. मैं इस बात पर चौंक गया क्योंकि मैं लगातार अपना काम कर रहा था और आफिस के रिकार्ड से लेकर वीडियो रिकार्डिंग तक सभी से मेरी बात सही साबित हो रही थी लेकिन बिनवाल ने न जाने मेरे खिलाफ कल्पेश को क्या क्या कहा था कि वे सच सुनने को तैयार ही नहीं थे.
मैंने काफी कहा कि बिनवाल को सामने बुलाकर बात साफ कर ली जाए लेकिन इस पर भी कल्पेश राजी नहीं हुए. इस बीच मुझे पता चला कि बिनवाल ने एचआर के पास भी मेरी काफी शिकायतें की हैं लिहाजा मैंने एचआर की तत्कालीन स्टेट हेड जया आजाद से शिकायतों की जानकारी ली और बिनवाल के सारे झूठों की हकीकत एचआर हेड के सामने खुद बिनवाल की मौजूदगी में बता दी. इससे बिनवाल का बौखलाना स्वाभाविक था और इसी रौ में उन्होंने मुझे कह दिया कि अब मैं इंदौर तो क्या मध्यप्रदेश में भी काम नहीं कर सकता. लगभग एक महीने तक मुझे कोई काम नहीं दिया गया और डीबी स्टार में मेरी जगह एक रिटायर व्यक्ति को लाकर बैठा दिया गया.
मार्च अंत तक आते आते मेरा तबादला रायपुर कर दिया गया और इससे पहले यह देख लिया गया कि मेरे वहां जाने की कोई संभावना तो नहीं है. मैंने बजाए इस्तीफा देने के नेशनल एडीटर और एमडी सुधीर अग्रवाल से मिलकर अपनी बात रखने की राह चुनना बेहतर समझा और इसके लिए आवश्यक था कि मैं संस्थान में बना रहूं, इसलिए मैंने रायपुर में ज्वाइनिंग दे भी दी. पिछले छह महीने के समय में मैं एमडी को ई मेल और रजिस्टर्ड लेटर के जरिए सारी जानकारी भेज चुका हूं और हर बार मिलने के लिए समय की मांग भी कर चुका हूं. यही हालत कल्पेश याग्निक के मामले में है. चूंकि बिनवाल तो कल्पेश के खास आदमी हैं और तमाम हेरफेर व जालसाजी के मामलों की जानकारी होते हुए भी उन्हें बचाते रहे हैं इसलिए मुझे उनसे तो कोई उम्मीद भी नहीं थी लेकिन एमडी की तरफ से भी कोई जवाब मुझे नहीं मिला है.
इस पूरे मामले में एक कमाल की बात यह भी है कि बिनवाल पर अदालती आदेश के बाद पुलिस ने जालसाजी के एक मामले में एफआइआर भी दर्ज कर रखी है और भूमाफियाओं से उनके संबंध को लेकर कई सबूत भी कई स्तरों पर पेश किए जा चुके हैं. खुद भास्कर में बिनवाल पर अंदरूनी जांच हुई थी जिसमें महाशय के खिलाफ कई टिप्पणियां थीं लेकिन इस पर सच के पक्ष में जमकर लिखने वाले कल्पेश याग्निक ने ही कभी कार्रवाई नहीं होने दी. बिनवाल ने मेरे खिलाफ लंबी साजिशें कीं लेकिन एक मामले में भी वे कोई ठोस बात नहीं कह सके इसलिए उन्होंने मैनेजमेंट के गले यह बात उतारी कि यह व्यक्ति मजीठिया को लेकर दूसरे कर्मचारियों को प्रभावित कर सकता है और खुद भी संस्थान पर कानूनी कार्रवाई की ताक में है.
यही वजह है कि बिना किसी वजह के मेरा रायपुर तबादला कर दिया गया जबकि जालसाज और हर खबर के एवज में पैसे बनाने वाला बिनवाल मजे कर रहा है और अब भी रिपोर्टर वगैरह को साफ कह रहा है कितनी भी एफआईआर हो जाए, मेरा कोई कुछ बुरा नहीं होगा. आश्चर्य तो भास्कर प्रबंधन पर होता है जो एक जालसाज और वसूलीबाज को बचाने के लिए इस हद तक उतर जाता है कि ब्रांड इमेज को भी दांव पर लगाने को तैयार है और अपने एक ऐसे कर्मचारी के खिलाफ है जिसका अब तक का पूरा मीडिया का करियर बेदाग रहा है.
आदित्य पांडेय
adityanaditya@gmail.com
http://www.bhadas4media.com/print/9867-binwal-bhrastachari
http://www.bhadas4media.com/print/10161-aditya-pendey-ki-chitthiyan
मीडिया के साथियों....
मैं आदित्य पांडे इंदौर डीबी स्टार में 3 अगस्त 2008 से कार्यरत हूं और फिलहाल डीएनई की पोस्ट पर हूं. लगभग 3 साल पहले संपादक के तौर पर आए श्री मनोज बिनवाल को मैं कभी भी पसंद नहीं रहा क्योंकि वे कमोबेश हर खबर में पैसा बनाने की राह तलाशने को पत्रकारिता मानते हैं. दिसंबर 2015 में मनोज बिनवाल ने मुझे सूचना दी कि न्यू ईयर टीम के साथ मुझे काम करने के लिए नेशनल एडीटर कल्पेश याग्निक ने चुना है. मैंने इस टीम में काम किया और एक जनवरी 2016 से मैं फिर अपने मूल काम यानी डीबी स्टार में लौट आया.
जनवरी 2016 में अचानक एक दिन मुझे कल्पेश याग्निक ने बुलाकर कहा कि आप न हमारे साथ काम कर रहे हैं और न ही डीबी स्टार में काम कर रहे हैं. मैं इस बात पर चौंक गया क्योंकि मैं लगातार अपना काम कर रहा था और आफिस के रिकार्ड से लेकर वीडियो रिकार्डिंग तक सभी से मेरी बात सही साबित हो रही थी लेकिन बिनवाल ने न जाने मेरे खिलाफ कल्पेश को क्या क्या कहा था कि वे सच सुनने को तैयार ही नहीं थे.
मैंने काफी कहा कि बिनवाल को सामने बुलाकर बात साफ कर ली जाए लेकिन इस पर भी कल्पेश राजी नहीं हुए. इस बीच मुझे पता चला कि बिनवाल ने एचआर के पास भी मेरी काफी शिकायतें की हैं लिहाजा मैंने एचआर की तत्कालीन स्टेट हेड जया आजाद से शिकायतों की जानकारी ली और बिनवाल के सारे झूठों की हकीकत एचआर हेड के सामने खुद बिनवाल की मौजूदगी में बता दी. इससे बिनवाल का बौखलाना स्वाभाविक था और इसी रौ में उन्होंने मुझे कह दिया कि अब मैं इंदौर तो क्या मध्यप्रदेश में भी काम नहीं कर सकता. लगभग एक महीने तक मुझे कोई काम नहीं दिया गया और डीबी स्टार में मेरी जगह एक रिटायर व्यक्ति को लाकर बैठा दिया गया.
मार्च अंत तक आते आते मेरा तबादला रायपुर कर दिया गया और इससे पहले यह देख लिया गया कि मेरे वहां जाने की कोई संभावना तो नहीं है. मैंने बजाए इस्तीफा देने के नेशनल एडीटर और एमडी सुधीर अग्रवाल से मिलकर अपनी बात रखने की राह चुनना बेहतर समझा और इसके लिए आवश्यक था कि मैं संस्थान में बना रहूं, इसलिए मैंने रायपुर में ज्वाइनिंग दे भी दी. पिछले छह महीने के समय में मैं एमडी को ई मेल और रजिस्टर्ड लेटर के जरिए सारी जानकारी भेज चुका हूं और हर बार मिलने के लिए समय की मांग भी कर चुका हूं. यही हालत कल्पेश याग्निक के मामले में है. चूंकि बिनवाल तो कल्पेश के खास आदमी हैं और तमाम हेरफेर व जालसाजी के मामलों की जानकारी होते हुए भी उन्हें बचाते रहे हैं इसलिए मुझे उनसे तो कोई उम्मीद भी नहीं थी लेकिन एमडी की तरफ से भी कोई जवाब मुझे नहीं मिला है.
इस पूरे मामले में एक कमाल की बात यह भी है कि बिनवाल पर अदालती आदेश के बाद पुलिस ने जालसाजी के एक मामले में एफआइआर भी दर्ज कर रखी है और भूमाफियाओं से उनके संबंध को लेकर कई सबूत भी कई स्तरों पर पेश किए जा चुके हैं. खुद भास्कर में बिनवाल पर अंदरूनी जांच हुई थी जिसमें महाशय के खिलाफ कई टिप्पणियां थीं लेकिन इस पर सच के पक्ष में जमकर लिखने वाले कल्पेश याग्निक ने ही कभी कार्रवाई नहीं होने दी. बिनवाल ने मेरे खिलाफ लंबी साजिशें कीं लेकिन एक मामले में भी वे कोई ठोस बात नहीं कह सके इसलिए उन्होंने मैनेजमेंट के गले यह बात उतारी कि यह व्यक्ति मजीठिया को लेकर दूसरे कर्मचारियों को प्रभावित कर सकता है और खुद भी संस्थान पर कानूनी कार्रवाई की ताक में है.
यही वजह है कि बिना किसी वजह के मेरा रायपुर तबादला कर दिया गया जबकि जालसाज और हर खबर के एवज में पैसे बनाने वाला बिनवाल मजे कर रहा है और अब भी रिपोर्टर वगैरह को साफ कह रहा है कितनी भी एफआईआर हो जाए, मेरा कोई कुछ बुरा नहीं होगा. आश्चर्य तो भास्कर प्रबंधन पर होता है जो एक जालसाज और वसूलीबाज को बचाने के लिए इस हद तक उतर जाता है कि ब्रांड इमेज को भी दांव पर लगाने को तैयार है और अपने एक ऐसे कर्मचारी के खिलाफ है जिसका अब तक का पूरा मीडिया का करियर बेदाग रहा है.
आदित्य पांडेय
adityanaditya@gmail.com
http://www.bhadas4media.com/print/9867-binwal-bhrastachari
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