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Sunday, August 14, 2016

न जाने क्या जादू है...



अहसास का मतलब खुद को महसूस करने के लिए खोल देना है यह बात अब समझ आती है लेकिन स्वतंत्रता शब्द ने तो जाने कब से मुझे उलझा रखा है। शायद तभी से जब स्वतंत्रता (दिवस)का मतलब महज बूंदी के दो लड्डू से निकला करता था। कान्वेंट स्कूल की नर्सरी से थर्ड-फोर्थ तक तो इसके समझने का सवाल ही नहीं उठता था लेकिन आदिवासी स्कूल की टाटपट्टी पर छठी-सातवीं करते करते यह समझ आ गया कि गुलामी का विपरीतार्थी शब्द आजादी है, इस शब्द ने दो परीक्षाओं में एक एक, दो दो नंबर भी दिलाए। फिर एक दिन मम्मी(चूंकि तय परिभाषाओं से अलग चलना आदत में है इसलिए बता दूं कि यह कहते हुए मैं इसमें नानीजी को स्केच करूंगा) ने कहा स्वतंत्रता अलग बात है और स्वच्छंदता एकदम अलग और निरंकुशता तो बहुत ही अलग। स्वतंत्र होने में आपका खुद का एक तंत्र तो होता ही है।समझ नहीं आया तो भी बात को मैंने दिमाग के सेफ वॉल्ट में रख लिया क्योंकि यह पता था बात आगे काम आने जैसी बात है। नवीं दसवीं तक ये परिभाषाएं खंगाली जा चुकी थीं लेकिन तब अखबारों में नजर आने लगीं स्वाधीनता दिवस की बधाइयां। कमोबेश इसी समय संधि विच्छेद पढ़ रहे थे तो यह भी पता चल गया कि स्वाधीन उस पराधीन शब्द का उलट है जिससे जुड़ी चौपाई हम रामचरितमानस के पाठ में अलग अलग धुन में गाते हैंपराधीन सपनेहूं सुख नाहींलेकिन यह भी आजादी जैसा ही कम अपीलिंग सा शब्द लगा। आजादी यदि गुलामी से उलट है तो स्वाधीन में भी अधीनता का नकारात्मक सेंस तो है ही। जब मैं अपनी ही तरह सोच रहा हूं, अपने ही तंत्र से चल रहा हूं तो उसे स्व अधीन कहना रुचिकर भी नहीं लगता। वैसे एक संभावना यह भी है किस्वतंत्रका अर्थ जिन्होंनेऔर जिस तरह समझाने की कोशिश की थी वह भाव बहुत गहरा था। शायद इसीलिए आजादी से लेकर स्वाधीनता तक किसी शब्द में उतनी कशिश नहीं लगी जितनी स्वतंत्रता शब्द में महसूस होती रही और आज भी होती है। कॉलेज के पहले ही साल में पंजाबी कवि पाशकी किताब से रुबरु हुए तो उनकी कविताओं से स्वतंत्रता की परिभाषा में काफी कुछ जुड़ा और काफी कुछ घटा। यहीं तय हुआ कि अब एक ऐसा स्व तंत्र बनाया जाए जो किसी दूसरे के तंत्र से न टकराए यानी मेरी अपनी व्यवस्था जो दूसरों के तंत्र में न खलल डाले और न किसी और से प्रभावित हो। ऐसी कोशिश जब जब विफल होती बुरा लगता लेकिन एक दिन उस गेम एरीना में खड़ा था जहां कारनुमा खिलौने आपस में टकराते रहते हैं, इनकी आपस में टकराहट देखकर लगा कि आप जितना खुद की कार (ही कह लें क्या बुरा है) को बचाने की कोशिश करेंगे उतना कोई किसी और के आकर टकराने की संभावना ज्यादा हो जाती है। पहले यह गेम बुरा सा लगा लेकिन चूंकि महसूस करने के लिए खुद को खोल रखा था इसलिए अहसास हुआ कि ये कारनुमा खिलौने इन टकराहटों से टूट नहीं जाते हैं, बल्कि हर ऐसी टक्कर के बाद अगली टकराहट तक उन्मुक्त महसूस करते हैं। खुद किसी दूसरे तंत्र से टकरा जाने के लिए खुले हुए या किसी और के आपके तंत्र से आ टकराने की चिंता से बेफिक्र। हर पंद्रह अगस्त पर मैं बूंदी के दो लड्डुओं से लेकर स्वाधीन, आजाद जैसे शब्दों से दो चार होता हूं लेकिन सच कहूं मुझे सिर्फ एक ही शब्द खींचता है और वह है स्वतंत्रता। न जाने क्या जादू है इस शब्द में जो मेरे रोम रोम को महसूस करने के लिए खोल देता है ताकि हर अहसास सच्चा सा हो। शायद यही वजह है कि खलील जिब्रान की प्यार और स्वतंत्रता को जोड़ती हुई एक बात भुलाए नहीं भूलतीमैं जिसे प्यार करता हूं चाहता हूं वह मुक्त रहे यहां तक कि मुझसे भी

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